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अपादान कारक
“वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहाँ अपादान कारक होता है।”
यानी अपादान कारक से जुदाई या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है। क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसी-न-किसी रूप में जरूर होती है।
जैसे-
पतझड़ में पीपल और ढाक के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं।
वह अभी तक हैदराबाद से नहीं लौटा है।
मेरा घर शहर से दूर है।
उसकी बहन मुझसे लजाती है।
खरगोश बाघ से बहुत डरता है।
नूतन को गंदगी से बहुत घृणा है।
हमें अपने पड़ोसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
मैं आज से पढ़ने जाऊँगा।
‘से’ का प्रयोग
‘से’ चिह्न ‘करण’ एवं ‘अपादान’ दोनों कारकों का है; किन्तु प्रयोग में काफी अंतर है। करण कारक का ‘से’ माध्यम या साधन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान का ‘से’ जुदाई या अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का ‘से’ साधन से जुड़ा रहता है।
जैसे-
वह कलम से लिखता है। (साधन)।
उसके हाथ से कलम गिर गई। (हाथ से अलग होना)
1. अनुक्त और प्रेरक कर्ता कारक में ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
मुझसे रोटी खायी जाती है। (मेरे द्वारा)
आपसे ग्रंथ पढ़ा गया था। (आपके द्वारा)
मुझसे सोया नहीं जाता।।
वह मुझसे पत्र लिखवाती है।
2. क्रिया करने की रीति या प्रकार बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
धीरे (से) बोलो, कोई सुन लेगा।
जहाँ भी रहो, खुशी से रहो।
3. मूल्यवाचक संज्ञा और प्रकृति बोध में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है।
जैसे-
कल्याण कंचन से मोल नहीं ले सकते हो।
छूने से गर्मी मालूम होती है।
वह देखने से संत जान पड़ता है।
4. कारण, साथ, द्वारा, चिह्न, विकार, उत्पत्ति और निषेध में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
आलस्य से वह समय पर न आ सका।
दया से उसका हृदय मोम हो गया।
गर्मी से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था।
जल में रहकर मगर से बैर रखना अच्छी बात नहीं।
वह एक आँख से काना और एक पाँव से लँगड़ा जो ठहरा।
आप-से आप कुछ भी नहीं होता, मेहनत करो, मेहनत।
दौड़-धूप से नौकरी नहीं मिलती, रिश्वत के लिए भी तैयार रहो।
5. अपवाद (विभाग) में ‘से’ का प्रयोग अपादान के लिए होता है।
जैसे-
वह ऐसे गिरा मानो आकाश से तारे।
वह नजरों से ऐसे गिरा, जैसे पेड़ से पत्ते।
6. पूछना, दुहना, जाँचना, कहना, पकाना आदि क्रियाओं के गौण कर्म में ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
मैं आपसे पूछता हूँ, वहाँ क्या-क्या सुना है?
भिखारी धनी से कहीं जाँचता तो नहीं है?
मैं आपसे कई बार कह चुकी हूँ।
बाबर्ची चावल से भात पकाता है।
7. मित्रता, परिचय, अपेक्षा, आरंभ, परे, बाहर, रहित, हीन, दूर, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, अतिरिक्त, लज्जा, बचाव, डर, निकालना इत्यादि शब्दों के योग में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है।
जैसे- संजय भांद्रा अपने सभी भाइयों से अलग है।
उनको इन सिद्धांतों से अच्छा परिचय है।
धन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, विद्या से होता है।
बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्रों से कहीं अच्छा होता है।
मानव से तो कुत्ता भला जो कम-से-कम गद्दारी तो नहीं करता।
घर से बाहर तक खोज डाला, कहीं नहीं मिला।
विद्या और बुद्धि से हीन मानव पशु से भी बदतर है।
अभी भी मँझधार से किनारा दूर है।
यदि मैं पोल खोल दूं तो तुम्हें दोस्तों से भी शर्माना पड़ेगा।
भला मैं तुमसे क्यों डरूँ, तुम कोई बाघ हो जो खा जाओगे।
अन्य लोगों को मैदान से बाहर निकाल दीजिए तभी मैच देखने का आनंद मिलेगा।
8. स्थान और समय की दूरी बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
अभी भी गरीबों से दिल्ली दूर है।
आज से कितने दिन बाद आपका आगमन होगा?
9. क्रियाविशेषण के साथ भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
आप कहाँ से टपक पड़े भाई जान?
किधर से आगमन हो रहा है श्रीमान् का?
10. पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।
जैसे-
उसने पेड़ से बंदूक चलाई थी। (पेड़ पर चढ़कर)
कोठे से देखो तो सब कुछ दिख जाएगा। (कोठे पर चढ़कर)
कुछ स्थलों पर ‘से’ लुप्त रहता है
जैसे-
बच्चा घुटनों चलता है।
खिल गई मेरे दिल की कली आप-ही-आप।
आपके सहारे ही तो मेरे दिन कटते हैं।
साँप-जैसे प्राणी पेट के बल चलते हैं।
दूधो नहाओ, पूतो फलो।
किसके मुँह खबर भेजी आपने?
इस बात पर मैं तुम्हें जूते मारता।
आप हमेशा इस तरह क्यों बोलते हैं?